चंदा
आज चंदा झोली फैलाये खड़ा है ,तम के साए में नीरस सा क्यों पडा है ?
क्या रवि से मांगता है प्रेम थोडा ?
या सरासर चांदनी को मांगता है !
अपनी तृष्णा के समुंदर में पड़ा है ,
आज चंदा झोली फैलाये खड़ा है .
क्यों कशिश सी जागती है आज मन में ?
क्यों तड़प के सर में औंधे मुहँ पड़ा है ?
क्या हुआ एक रात काली आ गयी जो ,
कल को चांदनी के मद में झूमेगा तू ,
हौंसले का नाम ही तो जिन्दगी है ,
इस से बेहतर क्या कहूं तू ही बता दे !